यह भविष्यवाणी नहीं। जो चल रहा है, उसका दूर से नजर आ रहा अनुमान है। नीतीश कुमार बिहार में एक बार फिर जनादेश से अलग राह ले सकते हैं। उन्हें 2015 में राजद के साथ जनादेश मिला था। तब नीतीश सहयोगी दलों के दबाव से असहज थे और 2017 में अलग होकर भाजपा की तरफ आ गए थे। ठीक उसी तरह इस साल भाजपा के साथ सरकार बनाने के बाद से भी वे असहज हैं। हर दिन। हर पल।
बिहार में जो पर्दे के पीछे था, वह अरुणाचल प्रदेश में भाजपा के किए-धरे ने सामने ला दिया। अरुणाचल में जदयू के 6 विधायक भाजपा में आ गए। महागठबंधन को बिना कुछ किए ही मौका मिल गया। उसने नीतीश-निश्चय को भांपते हुए मरहम वाली बोली बोलनी शुरू कर दी। मतलब, पिछली बार जो रातों-रात हुआ, वह इस बार दिनदहाड़े भी हो जाए, यह मुमकिन है यानी सत्ता पलट। बस, इस बार सत्ता बदली तो नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं होंगे, यह पक्का है।
फिलहाल अंदर कुछ भी ठीक नहीं, 5 कारणों से समझिए
बिहार में NDA सरकार अस्थिर है, बेशक। भाजपा वाले इसे स्थिर बता रहे हैं, लेकिन जदयू के नेता सीधे तौर पर यह मान नहीं रहे। अरुणाचल प्रदेश में भाजपा के रवैए को इसका कारण बताया जा रहा है। यह इकलौता कारण नहीं है। इसके 5 कारण हैं-
1. अरुणाचल में धोखा
अरुणाचल प्रदेश में नीतीश की पार्टी भाजपा सरकार के साथ थी। जब उसके 6 विधायक भाजपा में चले गए तो जदयू के नए अध्यक्ष RCP सिंह ने साफ कह दिया कि भाजपा ने पीठ में छुरा भोंका है। जदयू का सीधा कहना है कि भाजपा उसके विधायकों को मंत्री बनाने की बात भी कह रही थी, लेकिन धोखे से 7 में से 6 विधायक तोड़ लिए गए। भाजपा ने जवाब दिया कि जदयू का नेतृत्व अपने विधायकों को संभाल नहीं पा रहा था।
2. भाजपा की गृह विभाग की चाह
बिहार में सरकार बनाने के दिन से भाजपा गृह विभाग चाह रही थी। भास्कर ने इसकी एक्सक्लूसिव खबर दी थी, लेकिन दोनों ही दलों ने ऐसी बात से इनकार किया था। अब पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता संजय पासवान ने वही बात दोहरा दी और कह दिया कि नीतीश गृह विभाग छोड़ें।
3. नीतीश के करीबी से दुराव
आमिर सुबहानी बरसों से गृह सचिव पद पर हैं। नीतीश के बेहद करीबी हैं। भाजपा लंबे समय से उन्हें हटाना चाह रही है। भाजपा की ओर से अब खुलकर आवाज उठा दी गई है। भाजपा के ज्यादातर मंत्रियों को नीतीश कुमार के चार अन्य प्रिय IAS अधिकारियों से भी दिक्कत है।
4. CM पद देकर भाजपा बड़ा भाई बन रही
जदयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा और 43 सीटें जीतीं। 110 सीटों पर उतरने वाली भाजपा को 74 सीटें मिलीं। यानी जदयू को 31 सीटें कम मिलीं। नीतीश इस हालत में मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे, लेकिन भाजपा ने बड़प्पन दिखाने के लिए पहले से तय समझौते के तहत उन्हें यह पद दे दिया।
भाजपा ने नीतीश को सीएम पद तो दिया, लेकिन उनके प्रिय डिप्टी सुशील कुमार मोदी को दूरकर दो-दो भाजपाई डिप्टी सीएम को उनके पास बैठा दिया। नीतीश ने जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी अपना दर्द जाहिर किया कि वह इस हाल में CM नहीं बनना चाहते थे। इस दर्द पर मरहम भाजपा की ओर से राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने ही ठीक से लगाया। भाजपा अध्यक्ष या अन्य नेताओं ने औपचारिकता भर की।
5. भाजपा ने लोजपा का इलाज नहीं किया
खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान कहते हुए चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने बिहार में NDA प्रत्याशियों के खिलाफ उम्मीदवार उतारे, लेकिन लक्ष्य था जदयू और नीतीश कुमार को बर्बाद करना। यह हुआ भी। चिराग की पार्टी भले ही एक सीट जीती, लेकिन उसने जदयू के 7 मंत्रियों समेत 39 प्रत्याशियों को हराने में अहम भूमिका निभाई। नीतीश कुमार भाजपा से लगातार यह उम्मीद लगाए रहे कि वह लोजपा को कुछ सबक सिखाएगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। लोजपा का इलाज नहीं करने से नीतीश की नाराजगी स्वाभाविक है।
नीतीश को दो अफसाेस और उनकी दो योजनाएं
नीतीश ने आरसीपी सिंह को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का फैसला कर लिया था। 27 दिसंबर को नीतीश ने खुद राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सामने यह प्रस्ताव रखकर मुहर लगा दी। साथ ही दो तरह का अफसोस भी जाहिर किया।
पहला– पार्टी के बुरे प्रदर्शन के कारण वे मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे, अब भी भाजपा चाहे तो किसी को सीएम बना ले। दूसरा- अरुणाचल में भाजपा ने जदयू विधायकों को तोड़कर अच्छा नहीं किया।
नीतीश ने दो योजनाएं भी सामने रखीं। पहली– राष्ट्रीय अध्यक्ष सिंह ही अब भाजपा से तालमेल का काम करेंगे। दूसरी– नीतीश खुद देश में पार्टी को मजबूत करेंगे ताकि कोई छुरा न भोंक सके।
आगे की तस्वीर इस तरह बनती दिख रही है
आरसीपी सिंह CM बन सकते हैं, मोदी के सामने नीतीश चुनाैती पेश कर सकते हैं
हो सकता है कि किसी दिन नीतीश कुमार अचानक सीएम पद छोड़ें और जदयू अध्यक्ष सिंह का नाम आगे कर दें। ऐसे में जदयू महागठबंधन में शामिल होगा, लेकिन नीतीश कुमार का चेहरा गायब होगा। भाजपा उन्हें धोखेबाज नहीं कह सकेगी। वह बिहार की ओर से आंखें मूंदकर देश में जदयू को आगे बढ़ाने निकल पड़ेंगे।
एक समय सुशील कुमार मोदी के मुंह से पीएम मटेरियल कहे जा चुके नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने चुनौती के रूप में खड़े होने की तैयारी करेंगे। महागठबंधन की ओर से इसका आधा-अधूरा प्रस्ताव आ भी गया है। आधा-अधूरा इसलिए, क्योंकि राजद ने तेजस्वी को CM बनाने पर नीतीश को पीएम प्रोजेक्ट करने का ऑफर दिया है। हालांकि, इस ऑफर को जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने हताशा में दिया बयान करार दिया है।
सीएम भाजपाई और सरकार की चाबी जदयू को देकर देश देखने निकलें
हो सकता है कि नीतीश कुमार अचानक किसी दिन भाजपा को अपना मुख्यमंत्री देने के लिए कह दें। भाजपा मुख्यमंत्री देने को राजी हो गई तो सरकार की चाबी जदयू के पास आ जाएगी, क्योंकि भाजपा के 74 विधायक जदयू के 43 और HAM-VIP के 8 विधायकों के बगैर सरकार नहीं बचा सकते।
नीतीश कुमार अगर राष्ट्रीय राजनीति में वापसी करते हैं तो वे प्रधानमंत्री मोदी के सामने विपक्ष के विकल्प के रूप में भी दिखेंगे। हालांकि, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का कहना है कि NDA में अभी ऐसा कुछ नहीं चल रहा है। भाजपा-जदयू के रिश्तों में कोई तल्खी नहीं है।
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